स्तोत्र 3
3 1 याहवेह! कितने सारे हैं मेरे शत्रु! कितने हैं जो मेरे विरोध में उठ खड़े हुए हैं! 2 वे मेरे विषय में कहने लगे हैं, “परमेश्वर उसे उद्धार प्रदान नहीं करेंगे.” 3 किंतु, याहवेह, आप सदैव ही जोखिम में मेरी ढाल हैं, आप ही हैं मेरी महिमा, आप मेरा मस्तक ऊंचा करते हैं. 4 याहवेह! मैंने उच्च स्वर में आपको पुकारा हैं, और आपने अपने पवित्र पर्वत से मुझे उत्तर दिया. 5 मैं लेटता और निश्चिंत सो जाता हूं; मैं पुन: सकुशल जाग उठता हूं, क्योंकि याहवेह मेरी रक्षा कर रहा था. 6 मुझे उन असंख्य शत्रुओं का कोई भय नहीं जिन्होंने मुझे चारों ओर से घेर लिया है. 7 उठिए याहवेह! मेरे परमेश्वर, आकर मुझे बचाइए! निस्संदेह आप मेरे समस्त शत्रुओं के जबड़े पर प्रहार करें; आप उन दुष्टों के दांत तोड़ डालें. 8 उद्धार तो याहवेह में ही है. आपकी प्रजा पर आपकी कृपादृष्टि बनी रहे.